इस सत्संग की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए परमाराध्य गुरु महाराज कहते हैं -
मोक्ष का अर्थ है-बन्धन से छूट जाना। हम सब लोग बन्धन में बँधे हुए कैद हैं। शरीर में कैद हैं और जड़-चेतन की गिरह में बँधे हुए हैं। इसलिए सब लोग दुःख उठाते हैं। यह दुःख क्यों होता है? शरीर रहने पर ही दुःख होते रहते हैं, काम-क्रोध उत्पन्न होते रहते हैं। इसका कारण शरीर है। शरीर और संसार से छूटने से ही दुःख छूटेगा।*
*ज्ञान का अर्थ है-जानना । योग का अर्थ है-मिलना। ज्ञान से जानने में आएगा कि किससे मिलना है। योग जानने से उसकी क्रिया करके उससे मिलेंगे। ईश्वर से मिलने के लिए जो क्रिया है, वह योग है। जप ध्यान सरल योग का अभ्यास है। सत्संग करना ज्ञान का अभ्यास करना है। शरीर और आत्मा को जानना ज्ञान है। लिखा-पढ़ा आदमी पुस्तक पढ़ता है, तो इससे उसको ज्ञान होता है; किंतु किसी विशेषज्ञ के पास जाकर सुनने से विशेष ज्ञान होता है। अक्षर और मात्रा को पढ़ने से पुस्तक पढ़ लेते हैं; किंतु उसका अर्थ ठीक-ठीक नहीं समझ सकते। ठीक-ठीक समझने-पढ़ने के लिए ही लोग कॉलेज और विद्यालयों में जाते हैं। इसीलिए पढ़े-लिखे लोगों को चाहिए कि जहाँ कहीं कोई विशेषज्ञ हों, उनके पास जाकर सुनें और सीखें। यह जानकर ज्ञान और योग; दोनों का अभ्यास अत्यन्त आवश्यक है। बहुतों का ख्याल है कि थोड़ा जप-ध्यान करते हैं, इसी से मरने पर मुक्ति हो जाएगी; किंतु उपनिषत्कार ने बताया कि “मरने पर जो मुक्ति होती है, वह मुक्ति नहीं है। जब तुम जीवन में मुक्ति प्राप्त करो और तुम्हें परमात्म स्वरूप की प्रत्यक्षता हो, तब तुम मरने पर मुक्त ही हो।
-- महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज