अस संगति जरि जाय, न चर्चा राम की ।
दुलह बिना बारात, कहो किस काम की ॥
जिस संगति में रामनाम की चर्चा न हो, वह संगति बेकार है, जैस बिना दुल्हे की बारात।
हमलोगों का सत्संग ईश्वर भक्ति का वर्णन करता है। इस सत्संग में जो कुछ कहा जाता है, वह परमात्मा राम को प्राप्त करने के यत्न के संबंध में ही। किस यत्न से हम उन्हें पावें, यह हम जानें। स्वरूप से वे कैसे हैं? उनके स्वरूप का निर्णय करके ही हम यत्न जान सकेंगे कि इस यत्न से ईश्वर को प्राप्त करेंगे। इसलिए पहले स्वरूप-ज्ञान अवश्य होना चाहिए।
-- महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज