॥ॐ श्रीसद्गुरवे नमः॥
बोध-कथाएँ - 2. हृदय की शद्धि
कैसे होती है
(“महर्षि मेँहीँ
की बोध-कथाएँ” नामक पुस्तक से, सम्पादक : श्रद्धेय छोटे
लाल बाबा)
दो भाई थे। बड़े भाई ज्ञानी, भक्त और सत्संगी थे। छोटा भाई संसारी और घर का कारबारी था।
कारबार करते-करते छोटे भाई का मन एक बार ऊबा और बड़े भाई के पास जाकर उसने कहा -“अगर आप आज्ञा
दीजिए, तो मैं कुछ काल के लिए यात्रा करूँ, तीर्थों में जाकर स्नान करूँ और धामों में जाकर
देव-मूर्तियों के दर्शन करूँ?” बड़े भाई ने कहा-“बहुत अच्छा, जाओ और कुशलपूर्वक लौट आओ।
मेरी इस समूची कोरी तुमड़ी को अपने साथ लेते जाओ। जिस-जिस तीर्थ में तुम स्नान
करना, उस-उस तीर्थ में इस तुमड़ी को भी स्नान करा देना और जिस-जिस धाम में तुम दर्शन
करना, उस-उस धाम में इसको भी दर्शन करा देना।”
छोटा भाई उस तुमड़ी को लेकर चल पड़ा। कुछ दिनों के बाद तीर्थयात्रा करके
तुमड़ी को लेते हुए घर लौटा। बड़े भाई को प्रणाम करके उस तुमड़ी को सामने रख दिया।
छोटे भाई को देखकर बड़ा भाई, बड़ा प्रसन्न हुआ तथा आशीर्वाद दिया। उस तुमड़ी को बड़े भाई
ने विधि से काटा और उसके भीतर का गूदा निकाल दिया। उस तुमड़ी के भीतर जल रखने
योग्य स्थान हो गया। उसमें जल भरकर बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा - “इस जल को जरा
चखो।” छोटे भाई ने वैसा ही किया। मुँह में उस जल को रखते ही छोटे भाई ने उस जल को
कुल्ली से फेंक दिया और बड़े भाई से कहा - “यह जल नीम-सा तीता है।”
बड़े भाई ने कहा - “तीर्थों में स्नान करके और देव-मंदिरों में देव-मूर्तियों
के दर्शन करके भी इस तुमड़ी के भीतर को कड़वाई दूर नहीं हुई। इसी तरह उपर्युक्त
कामों से किसी के भीतर की मैल दूर नहीं होती और हृदय की शुद्धि नहीं होती, यह तो सत्संग
और भजन से ही होता है।"
(संतवाणी सटीक, पृष्ठ 30)
श्री सद्गुरु महाराज की जय