बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

भजु मन सतगुरु दयाल, गुरु दयाल प्यारे ।। 1 ।। Padawali bhajan 85


(85)
भजु मन सतगुरु दयाल, गुरु दयाल प्यारे ।। 1 ।।
गुरु पद को बड़ प्रताप, भक्तन को हरत ताप,
अति कराल काल काँप, अस प्रभाव न्यारे ।।2।।
गुरु गुरु अति सुखद जाप, जापक जन हरत ताप,
गुरु ही सुखरूप आप, अमित गुणन धारे ।।3।।
गुरु गुरु सब जाप भूप, अनुपम सत शान्ति रूप,
उपमा में अति अनूप, दायक फल चारे ।।4।।
गुरु गुरु जप गुरु दयाल, गुरु दयाल गुरु दयाल,
निशदिन गुरु गुरु दयाल, ‘मेँहीँ’ उर धारे ।।5।।




शब्दार्थ-
गुरु पद=गुरु के चरण, गुरु का स्थूल रूप । प्रताप=महिमा, प्रभाव, यश । ताप=कष्ट, दुःख, संकट । हरत=हर लेता है, नष्ट कर देता है । कराल=भयंकर । न्यारे=न्यारा, विलक्षण, अनोखा । जापक=जप करनेवाला । सुखरूप=सुखस्वरूप, सुखमय, सच्चे सुख से पूर्ण । गुणन=सद्गुणों को, प्रभावों को, शक्तियों को । भूप=राजा, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम । शान्तिरूप=शान्ति प्रदान करनेवाला । उपमा=किसी वस्तु के समान दूसरी किसी वस्तु को बताना, उपमान-वह वस्तु जिसके समान कोई दूसरी वस्तु बतायी जाय । अनूप=अनुपम, उपमा-रहित । फल चारे=चार फल (पुरुषार्थ)-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । उर=हृदय । अमित=असीम, अनन्त, असंख्य ।
भावार्थ-हे मेरे प्यारे मन ! परम दयालु सद्गुरु की भक्ति करो ।।1।।
गुरु-चरणों के ध्यान (गुरु के देखे हुए स्थूल रूप के मानस ध्यान) की बड़ी महिमा है । वह भक्तों के कष्टों को हर लेता है । गुरु के भय से अत्यन्त भयंकर काल भी काँपता है, गुरु का ऐसा विलक्षण प्रभाव है ।।2।। 
गुरुनाम का जप अत्यन्त सुखदायक है, वह जप करनेवालों के संकटों को हर लेनेवाला है । ऐसा क्यों न हो, स्वयं गुरु ही जो अपने आपमें सुख-स्वरूप और अनन्त सद्गुणों को धारण करनेवाले हैं अथवा ‘गुरु’ नाम स्वयं सुखस्वरूप गुरु ही है और अमित प्रभावों को धारण करनेवाला है ।।3।। 
गुरुनाम का जप अन्य सभी मन्त्रें के जपों से श्रेष्ठ, उपमा-रहित तथा सच्ची शान्ति प्रदान करनेवाला है । इसकी उपमा (उपमान) खोजने पर पता चलता है कि यह अत्यन्त उपमा-रहित (अद्वितीय) है अर्थात् गुरुमंत्र की बराबरी का दूसरा कोई मंत्र खोजने पर एकदम नहीं मिलता । इसका जप धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चारो फलों (पुरुषार्थों) को देनेवाला है ।।4।। 
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज कहते हैं कि गुरुनाम का सदा जप करते रहो और दयालु गुरु की स्थूल मूर्त्ति को भी हृदय में सदा धारण किये रहो अर्थात् उनकी स्थूल मूर्त्ति का भी हृदय में सदा ध्यान करते रहो ।।5।।

टिप्पणी-
1- किसी नाम की पवित्रता, श्रेष्ठता और गुणवत्ता आदि उसके नामी की पवित्रता, श्रेष्ठता और गुणवत्ता तथा जापक की श्रद्धा पर निर्भर करती है । संसार में राम-कृष्ण आदि अवतारी पुरुषों ने भी गुरु को सर्वोच्च स्थान देेकर उन्हें सम्मानित किया । गुरु के बिना किसी का काम नहीं चलता । देवी-देवता, मानव-दानव और दुष्ट लोगों के भी गुरु होते हैं । गुरु त्रिदेवों और परमेश्वर से भी बड़े माने गये हैं । इसलिए गुरुमंत्र सभी मंत्रें से श्रेष्ठ है । 
2- गुरुनाम जापक के हृदय में गुरु के रूप और गुणों को ला उपस्थित करता है । इसीलिए गुरुनाम गुरु का रूप कहा जाता है । नाम और नामी अभिन्न हैं- श्श् गिरा अरथ जल बीचि सम, कहियत भिन्न न भिन्न ।य् (मानस, बालकाण्ड)। 
3- गुरुनाम का जप चारो पुरुषार्थों को प्राप्त करानेवाली शब्द-साधना की जड़ है । 
4- 85वें पद्य का प्रथम चरण कुण्डल छन्द का है और अन्य सभी चरण हरिप्रिया छन्द के । 


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सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

सन्तमत की परिभाषा

सन्तमत की परिभाषा


 1. शान्ति स्थिरता वा निश्चलता को कहते हैं।

2. शान्ति को जो प्राप्त कर लेते हैं, सन्त कहलाते हैं।

3. सन्तों के मत वा धर्म को सन्तमत कहते हैं।

4. शान्ति प्राप्त करने का प्रेरण मनुष्यों के हृदय में स्वाभाविक ही है। प्राचीन काल में ऋषियों ने इसी प्रेरणा से प्रेरित होकर इसकी पूरी खोज की और इसकी प्राप्ति के विचारों को उपनिषदों में वर्णन किया। इन्हीं विचारों से मिलते हुए विचार को कबीर साहब और गुरु नानक साहब आदि सन्तों ने भी भारती और पंजाबी आदि भाषाओं में सर्वसाधारण के उपकारार्थ वर्णन किया। इन विचारों को ही सन्तमत कहते हैं; परन्तु सन्तमत की मूल भित्ति तो उपनिषद् के वाक्यों को ही मानने पड़ते हैं; क्योंकि जिस ऊँचे ज्ञान का तथा उस ज्ञान के पद तक पहुँचाने के जिस विशेष साधन नादानुसन्धान अर्थात् सुरत-शब्द-योग का गौरव सन्तमत को है, वे तो अति प्राचीन काल की इसी भित्ति पर अंकित होकर जगमगा रहे हैं। भिन्न-भिन्न काल तथा देशों में सन्तों के प्रकट होने के कारण तथा इनके भिन्न-भिन्न नामकरण होने के कारण सन्तों के मत में पृथकत्व ज्ञात होता है; परन्तु यदि मोटी और बाहरी बातों को तथा पन्थाई भावों को हटाकर विचारा जाय और संतों के मूल एवं सार विचारों को ग्रहण किया जाय तो, यही सिद्ध होगा कि सब सन्तों का एक ही मत है। 





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पूज्य गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज  ...

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