मंगलवार, 27 नवंबर 2018

बोध-कथाएँ - 4. लालच बुरी बलाय (“महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँ” नामक पुस्तक से, सम्पादक : श्रद्धेय छोटे लाल बाबा)


॥ॐ श्रीसद्गुरवे नमः॥

बोध-कथाएँ - 4. लालच बुरी बलाय(“महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँनामक पुस्तक से, सम्पादक : श्रद्धेय छोटे लाल बाबा)

एक आदमी को धन का बड़ा लालच था। उसको मालूम हुआ कि उसके पास जितनी जमीन है, यदि उसको बेच ले, तो बिक्री के उतने रुपयों से दूसरी जगह अधिक जमीन मिल जाएगी। यह जानकर उसने अपनी सारी जमीन बेच दी और वहाँ गया, जहाँ अधिक जमीन मिलनेवाली थी। वहाँ के जमीनवाले ने रुपये लेकर उससे कहा कि दिनभर में तुम जितनी जमीन घूमकर सायंकाल मेरे पास आ जाओगे, उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी।
वह लालच के मारे जमीन की ओर बढ़ा। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता जाता, वैसे-वैसे उसको अच्छी-से-अच्छी जमीन मिलती जाती। इसलिए वह आगे-ही-आगे बढ़ता गया। जब सूर्यास्त होने में थोड़ा समय बचा, तब उसको याद आया कि शाम तक उसे लौटकर जमीनवाले के घर पर भी पहुँचना है और दिन थोड़ा है। यह सोचकर वह उधर से लौट पड़ा।
धीरे-धीरे चलने से शाम तक वह नहीं पहुँच पाता, इसलिए उसने दौड़ लगाना शुरू किया। दौड़ते-दौड़ते संध्या होने तक तो वह जमीनवाले के घर पहुँच गया; परन्तु परेशानी के कारण तुरंत बेहोश होकर गिर पड़ा और मर गया। (किसी ने कहा कि यह लालची आदमी उतनी ही जमीन पाने का अधिकारी है, जितनी जमीन पर वह मरा पड़ा है। उतनी ही जमीन पर वह अन्यत्र दफना दिया गया।)
यही हालत सब लोगों की है। संसार की वस्तुओं को देखकर बड़ा लालच होता है। लेते-लेते लेने के अंत का ठिकाना नहीं। अधिक-से-अधिक लेने की हवस में आदमी अपनी शांति खो बैठता है। अपने को थोड़े में संतुष्ट करो। He who grips much, holds little. अर्थात् बहुत की आकांक्षा करनेवाला थोड़ा ही प्राप्त करता है।
अपने जीवन को खाली (शांति से खाली) मत बनाओ। अभी जो सुख मिलता है, वह अल्प है। विशेष सुख के लिए दूसरी ओर देखो। संतों ने कहा कि संसार की दूसरी ओर तुम्हारा अंदर हैं।
(शांन्ति-सन्देश, जनवरी-अंक, सन् 1989 ईस्वी)
श्री सद्गुरु महाराज की जय


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