।।ॐ श्रीसद्गुरवे नमः।।
बोध-कथाएँ – 21.
मौत का इलाज नहीं(“महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँ” नामक पुस्तक से) - सम्पादक : श्रद्धेय छोटे लाल बाबाएक राजा गाय का घी खाना पसन्द नहीं करता था। एक बार वह खूब बीमार पड़ा। राजा ने वैद्य से कहा - “देखों, मुझे गाय का घी नहीं देना।”
वैद्य ने गाय के घी में दवा तैयार करके राजा को दे दी और राजा से कहा कि मुझे कोई तेज सवारी दीजिए, शीघ्र एक दूसरे रोगी को देखने के लिए जाना है। वह तेज सवारी पर चढ़कर भागा।
इधर राजा ने दवाई खायी, तो पता चला कि उसमें गाय का घी मिला हुआ है। उसने दूसरी तेज सवारी पर एक आदमी को उस वैद्य को पकड़ने के लिए भेजा और कह दिया कि देखो, उसका दिया हुआ कुछ नहीं खाना। उस आदमी ने रास्ते में उस वैद्य को पकड़ा। वैद्य ने कहा कि राजा को ऐसी दवाई दी है, जिससे रोग अवश्य छूट जाएगा। जाइए, उनसे कह दीजिए। उस वैद्य को नाम था जीवक। जब राजा का रोग समाप्त हो गया, तब उसने जीवक को बहुत इनाम दिया।
बहुत रोग ऐसे होते हैं, जो छूटते ही नहीं हैं, फिर भी लोग इलाज कराते हैं। दवा करने से रोग छूट भी जाते हैं; लेकिन मौत का इलाज नहीं।
धन्वन्तरि का बेटा मर गया था। उसने बेटे की बहुत दवाई की, फिर भी मरने से उसे बचा नहीं सका। धन्वन्तरि सब दवाइयाँ लेकर और यह सोचकर उन्हें फेंकने जा रहा था कि अब इनमें रोग-निवारक शक्ति नहीं रही। ऊपर से एक फरिश्ता उतरा और उसने धन्वन्तरि को दवाइयाँ फेंकने से मना किया। फरिश्ते ने कहा - “देखो, तुम्हारी सब दवाइयाँ ठीक हैं। अगर तुमको विश्वास नहीं है, तो सामने के तालाब में पानी जमाने की दवाई देकर देखो।” तालाब में दवाई डालते ही पानी जम गया। फरिश्ते ने कहा कि तुम रोग की चिकित्सा कर सकते हो, मौत की नहीं।
उसी तरह परीक्षित् का हुआ। उनको उतने ही दिनों तक रहना था। तक्षक साँप ने काटा और वे मर गये। उनको भी जिलाने वैद्य जा रहे थे। रास्ते में तक्षक से भेंट हो गयी। तक्षक ने पूछा कि आप कहाँ जा रहे हैं? वैद्य ने कहा कि राजा परीक्षित् को तक्षक काटेगा और वे मर जाएँगे, मैं उन्हें जिला दूँगा। तक्षक ने कहा कि आप यह देखकर कहिए क़ि अब उनकी आयु शेष है या नहीं। वैद्य ने कहा कि आयु तो नहीं है। तब तक्षक ने कहा - “तो आप किसलिए जाइएगा। आप लौट जाइए। मैं ही तक्षक हूँ। मैं उनको काटूँगा और वे मर जाएँगे।”
मौत का इलाज नहीं होता और रोग का इलाज होती है। जिसकी आयु जितनी हैं, उतनी ही रहेगी। परबल की सीर निकालकर उसके रस को साँप काटे हुए व्यक्ति की नाक में देने से कैसा भी विष हो, उतर जाती है। एक जगह ऐसा हुआ कि दंशित व्यक्ति ने यह रस, नाक में देने ही नहीं दिया, वह मर गया।
मैंने अँगरेजी की एक किताब तें पढ़ा था, "All men must die.’ अर्थात् सभी लोग अवश्य मरेंगे। जो जैसा कर्म करेगा, वह वैसा फल पाएगा। इसलिए दुःखदायी कर्म नहीं करना चाहिए।
(शान्ति-सन्देश, सितम्बर-अंक, सन् 1992 ईस्वी)
श्री सद्गुरु महाराज की जय
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