शनिवार, 1 अक्टूबर 2022

प्रातः स्मरणीय अनन्त श्री विभूषित परमाराध्य संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की वाणी


     ।।श्री सद्गुरवे नमः।।

प्रातः स्मरणीय अनन्त श्री विभूषित परमाराध्य संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की वाणी

लोग स्थूल सौन्दर्य में आसक्ति रखते हैं; किन्तु यदि सूक्ष्म के विन्दु  रूप सौन्दर्य को प्राप्त करें,तो स्थूल सौन्दर्य स्वतः छूट जाएगा और वह जब कारण के दिव्य  सौन्दर्य को प्राप्त करेगा, तो सूक्ष्म का सौन्दर्य भी छूट जाएगा। इस प्रकार क्रम-क्रम से वह रुप से अरूप में चला जाएगा,फिर परमात्मा को प्राप्त करेगा।

शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

जिस संगति में रामनाम की चर्चा न हो, वह संगति बेकार है

अस संगति जरि जाय, न चर्चा राम की ।
दुलह बिना बारात, कहो किस काम की ॥
     
    जिस संगति में रामनाम की चर्चा न हो, वह संगति बेकार है, जैस बिना दुल्हे की बारात।   
    हमलोगों का सत्संग ईश्वर भक्ति का वर्णन करता है। इस सत्संग में जो कुछ कहा जाता है, वह परमात्मा राम को प्राप्त करने के यत्न के संबंध में ही। किस यत्न से हम उन्हें पावें, यह हम जानें। स्वरूप से वे कैसे हैं? उनके स्वरूप का निर्णय करके ही हम यत्न जान सकेंगे कि इस यत्न से ईश्वर को प्राप्त करेंगे। इसलिए पहले स्वरूप-ज्ञान अवश्य होना चाहिए।
       -- महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज

गुरुवार, 29 सितंबर 2022

जिस संगति में रामनाम की चर्चा न हो, वह संगति बेकार है, जैस बिना दुल्हे की बारात।

जय गुरु!🙏🙏🙏

संत कबीर साहब का वचन है -

अस संगति जरि जाय, न चर्चा राम की ।
दुलह बिना बारात, कहो किस काम की ॥
     
    जिस संगति में रामनाम की चर्चा न हो, वह संगति बेकार है, जैस बिना दुल्हे की बारात।   
    हमलोगों का सत्संग ईश्वर भक्ति का वर्णन करता है। इस सत्संग में जो कुछ कहा जाता है, वह परमात्मा राम को प्राप्त करने के यत्न के संबंध में ही। किस यत्न से हम उन्हें पावें, यह हम जानें। स्वरूप से वे कैसे हैं? उनके स्वरूप का निर्णय करके ही हम यत्न जान सकेंगे कि इस यत्न से ईश्वर को प्राप्त करेंगे। इसलिए पहले स्वरूप-ज्ञान अवश्य होना चाहिए।
       -- महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज

मंगलवार, 27 सितंबर 2022

पीपल_के_पेड़_पर_भूत_नहीं_बल्कि_पीपल_के_पेड़_के_नीचे_तथागत_बुद्ध_बैठते_हैं

“तथागत बुद्ध को ही पौराणिक कथाकारों ने भूत कहां हैं , पीपल के पेड़ पर भूत बैठते हैं| ऐसा आज भी ब्राह्मण लोग कहते हैं ? जबकि सच्चाई यह हैं कि , पीपल के पेड पर भूत नहीं , बल्कि पीपल के पेड़ के नीचे बुद्ध बैठते थें| अर्थात् तथागत बुद्ध को पीपल के पेड के नीचे ही ज्ञान प्राप्त हुआ था| पीपल का पेड़ यह तथागत बुद्ध के “ज्ञान प्राप्ति” का प्रतिक हैं , इसलिए पीपल के पेड़ को बोधिवृक्ष कहां जाता हैं| पौराणिक कथाकारों ने बुद्ध महती को काउंटर करने के लिए “बुत” और “भूत” यह शब्द बनाएं हैं| ‘भूत पिशाच निकट नहि आवै , महावीर जब नाम सुनावे’ , ऐसा हनुमान चालिसा में जिक्र मिलता हैं ? उन्हें कहना कुछ और हैं , और कहते कुछ और हैं| उन्हें कहना हैं कि , बुद्ध और उनके बौद्ध भिक्खू निकट नहीं आएंगे| जब आप शक्तिबल का इस्तेमाल करेंगे , जब आप महावीर नाम सुनाएंगे| जबकि सच्चाई यह हैं कि , तथागत बुद्ध को ही ‘वीरों का वीर महावीर’ कहां हैं|  इस तरह की पौराणिक कथाकारों की धोखेबाजी हमें समझनी होगी|
कुछ ब्राह्मण कहते हैं कि , पीपल के पेड़ पर ब्राह्मणों का भूत होता हैं| जिसे मुंजा कहां जाता हैं , जब कोई ब्राह्मण का लड़का ब्राह्मणी संस्कारों को पुरे किए बगैर मर जाता हैं , तों वह भूत बन जाता हैं| इस तरह के ब्राह्मण लड़कों का निवास पीपल के पेड़ के साथ-साथ कुएं पर भी होता हैं| पीपल का यह भूत लोगों को प्रताड़ित नहीं करता , बल्कि लोगों को सिर्फ़ डराने का काम करता हैं| कभी-कभी ब्राह्मणों द्वारा लिखीं गई पौराणिक कथाएं यह कहती हैं कि , पीपल के पेड़ पर साक्षात् भगवान श्री कृष्ण का निवास होता हैं| तों कभी-कभी उनकी पुराण कथाएं यह कहती हैं कि , पीपल के पेड़ पर ब्राह्मण भूत का निवास होता हैं| पीपल के पेड़ को वे कभी “श्री कृष्ण” जी का तो कभी “ब्राह्मण भूत” का निवास स्थान बताते हैं| असली सच्चाई यह हैं कि , तथागत बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था , तथागत बुद्ध को अनदेखा करने/ नजरंदाज करने के लिए ही पौराणिक कथाकारों ने विभिन्न कथाएं लिखीं हैं|

तथागत बुद्ध ने संपूर्ण विश्व को ज्ञान दिया था| इसलिए संपूर्ण विश्व में तथागत बुद्ध के अलग-अलग नाम पड़े थे/ पड़े हैं| तथागत बुद्ध को आज भी संपूर्ण विश्व में अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं| अखंड जम्बूद्वीप में तथागत बुद्ध के सहस्त्र नाम मिलते हैं| वर्तमान में ब्राह्मण लोग हमें जो काल्पनिक देवी-देवताओं की सहस्त्र नामावली दिखाते हैं , उनके इस नामावली में भी तथागत बुद्ध के नाम छुपे होते हैं| जैसे कि , तथागत बुद्ध से ही बुद्ध , बुध , बुद्द , बोद , बौद्ध , बोत , बोट , बुत , और भुत ऐसे नाम पड़े हैं| इससे स्पष्ट होता हैं कि , ब्राह्मण लोगों ने तथागत बुद्ध को ही भुत कहां हैं| इतना ही नहीं , बल्कि तथागत बुद्ध का सीधा संबंध बुद्धि  , बुद्धिजीवी , बुद्धिमान इन शब्दों से होने की वज़ह से इन लोगों ने जानबुझकर बुद्धू यह शब्द प्रचलन में लाया|  ताकि बुद्ध का ओर अपमान कर सकें| तथागत बुद्ध को भूत कहकर प्रचार में लाना / पीपल के वृक्ष से लोगों को दूर रखना , इससे हम समझ सकतें हैं कि , इन लोगों के अंदर तथागत बुद्ध के प्रति कितनी नफरत भर पड़ी हैं| पीपल के पेड़ के ऊपर भूत नहीं , बल्कि पीपल के पेड़ के नीचे बुद्ध बैठते थे , इसलिए ब्राह्मण लोग हमें पीपल के पेड़ के पास जाने से रोकते हैं| इसलिए यह बात ठान लिजिए कि , पीपल के पेड़ पर कोई भूत वगैरह नहीं होते , बल्कि पीपल के पेड़ के नीचे बुद्ध बैठते थे| इसलिए पौराणिक कथाकारों ने जानबूझकर भूतों की कहानी प्रचार-प्रसार में लाई हैं , यहीं सच्चाई हैं”.
— कुणाल कुमार
नमो बुद्धाय...

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पूज्य गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज  ...

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