शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

                      



  भजन नंबर 105

सतगुरु चरण टहल नित करिये नर तन के फल एहि है। युग-युग जग में सोवत बीते सतगुरु दिहल जगाय हे ॥ १ ॥ आँधरि आँखि सुझत रहे नाहीं थे पड़े अन्ध अचेत हे । करि किरपा गुरु भेद बताए दृष्टि खुलि मिटल अचेत हे ॥२॥ भा परकाश मिटल अँधियारी सुक्ख भएल बहुतेर हे । गुरु किरपा की कीमत नाहीं मिटल चौरासी फेर हे ॥३॥ धन धन धन्य बाबा देवी साहब सतगुरु बन्दी छोर हे । तुम सम भेदि न नाहिं दयालू 'मेँहीँ' कहत कर जोरि हे ॥४॥




 यह भजन महर्षि मेंही द्वारा रचित पदावली से लिया गया है 

मुफ्त में संतमत पदावली डाउनलोड करें 

संतमत पदावली Amazon से खरीदने के लिए यहां क्लिक करें


संपर्क करें 

हमारे फेसबुक पेज से जुड़े          हमारे Whatsapp ग्रुप में जुड़े        Twitter     Telegram Group Link 






सन्त सद्गुरू महषि मेँहीँ परमहंस जी महाराज फोटो सहित जीवनी galary with Biography

पूज्य गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज  ...

Buy Santmat Padawali